स्त्री के प्रति समाज का विवेकमूल दृष्टिकोण ही  स्त्री अस्मिता है '- ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह'रवि

सुलतानपुर । साक्षी सृजन संवाद समिति एवं कथा समवेत पत्रिका के संयोजन में जिला पंचायत सभागार में 'माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान समारोह एवं साहित्यिक संगोष्ठी-2019' का आयोजन किया गया।  लोकभूषण आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप की अध्यक्षता और चर्चित व्यंग्यकार हनुमान प्रसाद मिश्र के मुख्य आतिथ्य में कहानी प्रतियोगिता में सफल छः कहानीकारों और प्रतियोगिता के निर्णायकों को सम्मानित किया गया।
         दो सत्रों में सम्पन्न कार्यक्रम के पहले सत्र का आरम्भ मां सरस्वती और माँ धनपती देवी के चित्र पर माल्यार्पण,दीप प्रज्वलन एवं डॉ करुणेश भट्ट की वाणी वंदना से हुआ।। आयोजक व पत्रिका के सम्पादक डॉ शोभनाथ शुक्ल,संगीता शुक्ला, कथाकार चित्रेश,डॉ जे पी सिंह और मंचस्थ अतिथियों द्वारा  वर्ष 2019 में कहानी प्रतियोगिता में सफल हुए कहानीकारों - मृदुला शुक्ला गाजियाबाद, शिवप्रसाद सिकंदराबाद तेलंगाना,डॉ विवेक द्विवेदी रीवाँ म.प्र. और अखिलेश श्रीवास्तव चमन लखनऊ को अंगवस्त्र,स्मृतिचिह्न,प्रमाणपत्र और घोषित नकद धनराशि प्रदान करके सम्मानित किया गया । कथा समवेत पत्रिका के दिसम्बर अंक का लोकार्पण भी इसी सत्र में मंचस्थ अतिथियों और वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में किया गया।प्रतियोगिता की कहानियों और पत्रिका पर  बोलते हुए कथाकार चित्रेश ने कहा कि इन कहानियों में संघर्ष और विजन की निरन्तर मौजूदगी बनी हुई है।ये रचनाएँ सामाजिक तनाव से मुक्त नहीं है। 
द्वितीय सत्र में 'नारी अस्मिता के प्रश्न और हिंदी कहानी का वर्तमान परिदृश्य' विषय पर बीज वक्तव्य देते हुए राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व युवा आलोचक ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने कहा- 'पुरुष के समान अधिकार,पुरुष वर्चस्व का विरोध और स्त्री के प्रति समाज का विवेकमूलक दृष्टिकोण ही स्त्री अस्मिता है।जो आज की हिन्दी कहानियों में भी साफ झलकता है।'  कथाकार मृदुला शुक्ला ने कहा कि स्त्रियाँ स्वयं ही कहानी होती हैं।उनके इस पास ढेरों कहानियां रहती हैं।स्त्री मानवीय होना चाहती है वैसे ही जैसे पुरुष है। शिवप्रसाद ने कहा कि समाज दूसरों के लिए नियम बनाता है खुद के लिए नहीं।यह खुरदुराहट आज की कहानियों में खूब है।
डॉ विवेक द्विवेदी का मत था कि देश में  लोगों के जीवन को खुशी देने के बजाय अन्य दिशा में कार्य किया जा रहा है। यह चिंताजनक स्थिति कहानियों का मूल बन रही है।अखिलेश श्रीवास्तव चमन ने कहा कि -  बाजारवाद ने एक तरफ परिवार की मर्यादा को तोड़ा है और दूसरी तरफ समाज को अनैतिकता के दलदल में धकेला है।आज की कहानियों इसे हम बखूबी महसूस सकते हैं।
      इसी सत्र में साक्षी प्रकाशन संस्थान द्वारा प्रकाशित डॉ. लाल उदयभान पाण्डेय के काव्यसंग्रह 'खिल उठेगा आईना' का लोकार्पण किया गया।इस पुस्तक की चर्चा में डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि पुस्तक की कविताएं नदी की धारा जैसी हैं। इसके साथ ही अशोक प्रताप सिंह और कृपाशंकर वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये।इस सत्र की अध्यक्षता साहित्यकार जयंत त्रिपाठी ने की और मुख्य अतिथि कहानीकार वीरेंद्र त्रिपाठी रहे।कार्यक्रम के दोनों सत्रों का संचालन नवगीतकार अवनीश त्रिपाठी ने किया।लगभग चार घण्टे चले इस कार्यक्रम में सैकड़ों श्रोताओं के साथ आशुकवि मथुरा प्रसाद सिंह जटायु,शैलेन्द्र त्रिपाठी,डॉ सुशील कुमार साहित्येन्दु,इंदु सिंह,डॉ सूर्यदीन यादव,सुरेश चंद्र शर्मा,सीमा सिंह,उमा मिश्रा,भावना पाण्डेय, अरुणिमा,रामप्यारे प्रजापति, कुँवर सुल्तानपुरी, यतीन्द्र शाही ,पवन कुमार सिंह आदि उपस्थित रहे।