सुलतानपुर। ' किताबें हमें विचारशील व तर्कशील बनाकर निर्णय विवेक की क्षमता देती हैं । बाजारवाद के ख़तरों से लड़ना है तो हमें किताबों के पास जाना ही होगा ।'
यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार व युग तेवर के सम्पादक कमल नयन पाण्डेय ने कहीं । वे क्षत्रिय भवन सभागार में राजकमल प्रकाशन समूह व राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वारा आयोजित छः दिवसीय पुस्तक प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे ।
कमल नयन पाण्डेय ने कहा - ' पढ़ना अपने समय और समाज को समझना होता है । पढ़ने की संस्कृति विकसित करना आवश्यक है ।अपने समय की व्यस्था के विक्षोभ से प्रतिरोध उसी ने किया जो पढ़ने की संस्कृति से जुड़े रहे हैं । उन्होंने कहा - छपे हुये अक्षर का महत्व कभी खत्म नहीं होगा । पुस्तक प्रदर्शनी में सिर्फ किताबें ही नहीं बिकतीं बल्कि विचार का प्रसार होता है । इसलिए इस तरह की प्रदर्शनी आवश्यक है । '
लोकभूषण आद्या प्रसाद सिंह 'प्रदीप' ने इस अवसर पर कहा - 'पुस्तकें पथ प्रदर्शक का काम करती हैं । जितना ही हम पुस्तकों के नजदीक होंगे उतना ही सभ्य होंगे । पुस्तकों से सामाजिक समरसता उपजती है ।'
मुख्य अतिथि विधायक सूर्यभान सिंह ने कहा किताबों के पास जाकर व उन्हें समझ कर हम मनुष्य बनते हैं । उन्होंने महाविद्यालय के पुस्तकालय हेतु दो लाख रूपये की विधायक निधि देने की घोषणा की ।
समारोह की अध्यक्षता क्षत्रिय शिक्षा समिति के अध्यक्ष एडवोकेट संजय सिंह व संचालन महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष इन्द्रमणि कुमार ने किया । महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.एम.पी.सिंह बिसेन ने स्वागत व प्रबंधक एडवोकेट राम बहादुर सिंह ने आभार ज्ञापन किया ।
राजकमल प्रकाशन समूह के अंजनी मिश्र ने इस अवसर पर कहा कि इस समय लगभग दस महत्त्वपूर्ण प्रकाशन राजकमल प्रकाशन समूह का हिस्सा हैं । जिनकी महत्तवपूर्ण पुस्तकें सुल्तानपुर प्रदर्शनी में उपलब्ध हैं ।
इस अवसर पर डॉ.राधेश्याम सिंह , मथुरा प्रसाद सिंह'जटायु' ,डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येंदु' , डॉ.ओंकारनाथ द्विवेद्वी , डॉ.डी.एम.मिश्र , ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह'रवि' ,जयंत त्रिपाठी, डॉ.जे.पी.सिंह , सुंदरलाल टंडन ,एम.जी.एस.के प्रबंधक बालचंद्र सिंह , डॉ.धर्मपाल सिंह , डॉ.महमूद आलम , डॉ.रंजना पटेल , महाविद्यालय के सभी प्राध्यापक , विद्यार्थी व प्रबंध समिति के सदस्यों समेत अनेक प्रमुख लोग उपस्थित रहे ।
किताबों के पास जाकर व उन्हें समझ कर हम मनुष्य बनते हैं : सूर्यभान सिंह